देश की राजनीति में फिल्मी सितारों का इस्तेमाल कई दफा राजनीति के दिग्गजों को हराने के लिए भी किया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ भी एक नहीं दो बार लखनऊ सीट पर फिल्मी सितारों को उतारा गया लेकिन अटल जी कभी हारे नहीं।
सिनेमा और सियासत के बीच का रिश्ता कोई नया नहीं है। कुछ फिल्मी सितारों ने राजनीति में कामयाबी के झंड़े गाड़े तो कुछ सिर्फ चुनावी रैलियों में राजनीतिक दलों के लिए भीड़ जुटाने का काम किया। समय समय पर इन सितारों को उपयोग सियासत में दिग्गज नेताओं को हराने के लिए किया जाता रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक करियर में दो बड़े मौके आए जब उन्हें हराने के लिए उनके विरोध में फिल्मी सितारों को उतारा गया लेकिन कोई भी उन्हें पछाड़ नहीं पाया। 1996 से लेकर 2004 तक प्रधानमंत्री पद के लिए अटल जी को चेहरा बनाकर ही बीजेपी ने लोकसभा चुनाव लड़ा था।
1996 में समाजवादी पार्टी की टिकट पर राज बब्बर ने लखनऊ से ताल ठोकी थी। उस वक्त राज बब्बर फिल्मी दुनिया में अच्छे मुकाम पर थे। लोग उनकी एक झलक पाने के लिए बेताब थे। रैलियों में भीड़ देखकर हर कोई दावा करता था कि इस बार अटल जी हार जाएंगे लेकिन जब चुनाव के परिणाम आए तो राज बब्बर सवा लाख वोटों से हार गए। 1996 में वाजपेयी जी के नेतृत्व में सरकार बनीं लेकिन उनकी सरकार विश्वासमत हासिल नहीं कर पाई। इसके बाद संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी लेकिन वो भी चल नहीं पाई। उस वक्त प्रधानमंत्री पद के लिए समूचे देश से सिर्फ एक ही आवाज उठ रही थी। ऐसा लग रहा था कि अगर पूरे देश में प्रधानमंत्री के लिए वोट मांगे जाए तो वाजपेयी को चुनौती देने वाला कोई नहीं हैं। अटल जी की लोकप्रियता से परेशान विपक्ष ने हेमवती नंदन बहुगुणा के तर्ज पर उन्हें लखनऊ में घेरने की योजना बनाई।
योजना बनी कि क्यों नहीं अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ ऐसे मजबूत उम्मीदवार उतारा जाए तो यूपी की सियासत में दूसरा अमिताभ साबित हो। काफी मंथन के बाद 1998 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने वाजपेयी के खिलाफ फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली को लखनऊ में अपना उम्मीदवार बनाया। मुजफ्फर अली के लखनऊ से घरेलू ताल्लुकात थे, और वे फिल्मों का ग्लैमरस चेहरा भी थे। ‘उमराव जान’ जैसी चर्चित फिल्म बनाने वाले कवि, सामाजिक कार्यकर्ता और फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली के समर्थन में कई फ़िल्मी सितारे भी लखनऊ आए। लेकिन वाजपेयी जी को लखनऊ पर और लखनऊ के लोगों को वाजपेयी जी पर भरोसा था। अटल जी दो लाख से अधिक वोटों से जीत गए और समाजवादी पार्टी की रणनीति धरी की धरी रह गई।