जब के. आसिफ पैसा पानी की तरह बहाने लगे तो मुगल-ए-आजम के फाइनेंसर शपूरजी परेशान हो गए और उन्होंने सोहराब मोदी से इसका निर्देशन करने का फैसला किया लेकिन सोहराब ने मना कर दिया। सोहराब के मना करने की वजह क्या थी। आइए जानते हैं।
अगर ये कहा जाए कि के. आसिफ ने अपने जीवन में कोई बड़ा काम किया है तो बेशक वो काम फिल्म मुगल-ए-आजम का निर्देशन था। इस फिल्म को बनने में करीब डेढ़ दशक लग गए। मुगल ए आजम उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी। इस फिल्म के एक गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ को फिल्माने में 10 लाख रुपये खर्च हो गए थे जो उस दौर में किसी फिल्म का बजट हुआ करता था। इस फिल्म को बड़ा बनाने के लिए हर छोटी बातों पर गौर किया गया था।
फिल्म के प्रोड्यूसर थे शपूरजी पलौंजी मिस्त्री, शपूर जी को सिनेमा पसंद नहीं था लेकिन वो नाटक देखने के शौकीन थे। वो अक्सर ओपेरा हाउस में पृथ्वीराज कपूर के नाटक देखने आते थे। एक दिन पृथ्वीराज कपूर ने शपूरजी से कहा, ‘आपके पास बहुत पैसा है और आपके जैसा ही के. आसिफ जैसे को फाइनेंस कर सकता है। मुझे नहीं मालूम कितने साल और कितना पैसा लगेगा, पर मैं इतना यकीन से कह सकता हूं कि वो फिल्म अभूतपूर्व बनाएगा। शपूरजी तैयार हो गए।
के. आसिफ पैसा पानी की तरह बहा रहे थे। जब करोड़ों खर्च हो गया तो इस बात से शपूर जी परेशान हो गए और उन्होंने फैसला किया की फिल्म के निर्देशन की कमान किसी और की दी जाएगी। बतौर डायरेक्टर सोहराब मोदी का नाम फाइनल हुआ। सोहराब मोदी और शपूरजी के बीच कई दौर के मीटिंग के बाद सोहराब मोदी फिल्म का सेट देखने महबूब स्टूडियों पहुंचे। सेट देखकर जब वो लैट रहे थे तो उनकी गाड़ी खराब हो गई। शपूरजी ने उन्हें अपनी गाड़ी में लिफ्ट दे दी। रास्ते में शपूरजी के ड्राइवर ने उन्हें बताया की के. आसिफ अजीब आदमी है।
उसके पास खुद के लिए दो जोड़े कपड़े हैं और यहां सेट पर अनारकली के लिए असली हीरे जवाहरात की जिद करता है। खुद रहता एक छोटे से घर में, सोता भी चटाई पर है, और अपनी तनख्वाह को दूसरे जरूरतमंदों में बांट देता है। इन सारी बातों को सोहराब मोदी ध्यान से सुन रहे थे। सोहराब ने घर पहुंच कर शपूरजी को फोन लगाया और मुगल- ए- आजम को डायरेक्ट करने से इंकार कर दिया और साथ ही एक सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि अगर आप अपने फिल्म का भला चाहते हैं तो इस फिल्म का डायरेक्शन के. आसिफ के अलावा किसी और से नहीं कराना।